Hi dosto.... mai tang aa gaya hu yeb sab sunn sunn kar ki ....AVINASH ANAND JHA
हर
किसी ने किसी दरगाह पर फूल, अगरबत्ती, सेहरा, चादर, गुड़ चढा़ने की बात तो
सुनी होगी, पर दिल्ली की एक दरगाह पर जलती हुई सिगरेट चढा़कर मन्नत मांगी
जाती...
मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के
गायबैड़ा ग्राम के पाँच ग्रामवासी अचानक किसी अज्ञात बीमारी का शिकार होकर
मौत के मुँह में चले गए। जब ग्रामीणों को मौत का कुछ कारण समझ में नहीं आया
तो वे घबराकर वहीं पास के एक तांत्रिक के पास पहुँचे।
तांत्रिक ने मौत का कारण गाँव
पर एक भूत का साया होना बताया। यह भी बताया कि वह भूत और लोगों को भी मार
सकता है। ग्रामीणों के आग्रह पर तांत्रिक ने भूत को भगाने की एक योजना
बनाई।
तांत्रिक
के कहने पर घोषणा की गई कि गाँव के बाहर से आए लोग तुरंत गाँव छोड़कर चले
जाएँ और केवल यहाँ के रहवासी ही गाँव में ठहरें और अनिवार्य रूप से
पूजा-पाठ और हवन कर्म में हिस्सा लें, तभी गाँव भूतों के साए से मुक्त हो
पाएगा। इस आदेश का शब्दश: पालन किया गया और भजन, हवन आदि धार्मिक
कार्यक्रमों का आयोजन कर भूत को शांत किया गया।
आमतौर
यह देखा गया है कि इनसान जिस चीज को समझ नहीं पाता है उसे या तो वह देवता
मान लेता है या फिर भूत-प्रेत का नाम दे देता है और इसी अज्ञानता का फायदा
कुछ लोग उठाते हैं और लोगों की भावनाओं के खिलवाड़ कर पैसा कमाने की राह
खोजते हैं। आज के इस कथित शिक्षित समाज में भी भूत-प्रेत का साया पड़ने
जैसी बातों पर विश्वास करना किस हद तक उचित है? आप इस बारे में क्या सोचते
हैं? हमें अवश्य बताइए।
क्या किसी इंसान के शरीर में
देवी माँ की छाया नजर आ सकती है। क्या कोई इंसान देवी का रूप धारण कर
अंगारों पर चल सकता है। आइए आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हम आपको
लेकर चलते हैं कुछ ऐसे लोगों के पास जिनका दावा है कि देवी उनके शरीर में
प्रवेश कर अपने भक्तों का कल्याण करती है और उनके दु:ख-दर्द दूर करती है।
आइए चलते हैं मध्यप्रदेश के thadhi
शहर में...यहाँ के माँ दुर्गा के एक मंदिर में आरती शुरू होते ही कुछ
महिलाओं में देवी तो कुछ पुरुषों में देवी का वाहन शेर या काल भैरव प्रवेश
करते हैं और ये अजीबो-गरीब ढंग से व्यवहार करते हुए स्वयं भी देवी की
आराधना करते हैं तथा देवी के रूप में भक्तों को आशीर्वाद भी देते हैं। इन
लोगों में देवी का शरीर में आगमन होने का जुनून इस हद तक होता है कि ये
जलता हुआ कपूर अपनी जुबान पर रखकर देवी की आरती उतारते हैं तो कुछ हाथ में
जलता कपूर लेकर देवी की आरती करते हैं।
इतना ही नहीं जब देवी माँ,
शेर और काल भैरव काफी लोगों के शरीर में प्रवेश कर चुके होते हैं तब ये आपस
में मिलकर नाचते-खेलते हैं और जलते हुए अंगारों पर नंगे पाँव चल पड़ते
हैं। इस पूरे क्रियाकलाप में आसपास मौजूद भक्त भी इनकी मदद करते हैं और
तमाशे का हिस्सा बनकर इसे देवी की आराधना का जरिया मानते हैं। जलते हुए
अंगारों पर खेलते-कूदते समय इनका उत्साह ऊँचाइयों पर होता है।
क्या
वाकई भक्तों का इस तरह से शरीर में प्रकट होने वाली देवी की आराधना करना
आस्था का प्रतीक है? क्या माँ का अपने भक्तों के शरीर में प्रवेश करने को
सच्चाई माना जा सकता है या यह केवल भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करने का
जरिया मात्र है? आपको क्या लगता है, अपनी राय से हमें जरूर अवगत कराएँ।
स्वयं नागकन्या होने का दावा
करने वाली माया का कहना है कि वह हर 24 घंटे में हवन के दौरान नागिन का रूप
धारण कर अपनी तीन बहनों से मिलने जाती है जो उसे अपने नाग पति को पाने के
लिए किस तरह साधना की जाए, यह निर्देश देती हैं। माया के मुताबिक ये तीनों
बहनें भी इच्छाधारी नागिनें हैं।
खुद को बचपन से शादीशुदा
समझने वाली माया नाग के नाम का सिंदूर भरती है और उसे पूरा विश्वास है कि
जल्द ही उसके पति के साथ उसका मिलन होगा। माया कहती है कि फिलहाल उसका पति
इस मृत्युलोक में उसके परिवार के मोह में फँसा हुआ है और उससे सारी
शक्तियाँ छीनी जा चुकी हैं।
अपने
पूर्व जन्म की कहानी सुनाते हुए वह कहती है कि द्वापर युग के दौरान वह एक
खाई में गिर गई थी तब किसी बाबा ने गोपाल नामक नाग को उसकी मदद के लिए
भेजा था, तभी से उन दोनों में प्रेम हो गया था। परंतु शादी न हो पाने की
वजह से उसने आत्महत्या कर ली थी। ...और तब से आज तक अपने साथी को पाने के
लिए भटक रही है।
नागलोक और मृत्युलोक की
अजीबो-गरीब कहानियाँ सुनाने वाली यह इच्छाधारी नागिन माया मध्यप्रदेश के
बड़नगर स्थित एक आश्रम में निवास करती है। इन कहानियों से प्रभावित वहाँ के
निवासी इनकी महामाया माँ भगवती के रूप में आराधना करते हैं।
लोगों
द्वारा माया की पूजा करना आस्था का प्रतीक है या उसका इच्छाधारी नागिन
होने के अंधविश्वास का प्रभाव है? आज के इस वैज्ञानिक युग में यह घटना
कितनी प्रासंगिक है, अपनी राय से हमें जरूर अवगत कराएँ।